बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

कविता: हवा

" हवा "

सर - सर चलती हवा, 
फर - फर आती हवा | 
कपडे उड़ा ले जाती हवा, 
आसमान में छोड़ आती हवा | 
गर्मी में ढूढ़ते लोग, 
चले जाते हवा की ओर | 
न मिलता हवा उनको,
थक जाते गर्मी में वो | 
तब मिलता हवा उनको, 
तब लेते चैन की साँस वो | 
सर - सर चलती हवा, 
फर - फर आती हवा |

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | कुलदीप के परिजन साल में अधिक समय कानपुर में रहते हैं काम करने के लिए | कुलदीप को कवितायेँ लिखने के आलावा डांस और खेलना खूब पसंद है | 

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