शीर्षक = इंसान
जिंदगी के हालात से जूझ रहा है इंसान /
कभी -कभी अपनी ही बनाई इंसानियत
से ही हार जाता है इंसान /
वह सोच नहीं पता पर वह क्या करे /
अपने उस दिल के दर्द को बयां नहीं
कर पता इंसान /
सपनो का भंडार खूब सजता है /
जो इस काबिल नहीं वह
उन अपने यादो में बनी सपने /
के उस जाल को बिछा नहीं
पता इंसान /
नाम = राज कुमार
अपना घर
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