बुधवार, 29 दिसंबर 2010

कविता: वे कुछ बनने आये है ....

वे कुछ बनने आये है ....

घुस- घुस कर ट्रेनों में।
लोग ही लोग आये है॥
वे अपने बड़े-बड़े बैगों में।
किताबे भर-भर लाए है॥
वे इंजिनियर बनने आये है।
वे पी० एच० डी करने आये है॥
वे डाक्टर बनकर जायेगें।
फिर वापस लौट के आयेंगे
अब प्रोफ़ेसर बनने आयेंगे
अपने को बदल कर आयेंगे॥
वे अब अंग्रेजी ही बोला करते है।
वे शायद अब हिंदी से डरते है॥
हिंदी में अब लिख नहीं पाते।
हिंदुस्तान में जी नहीं पाते
वे किताबे भर - भर लाये थे।
अब रुपया भर-भर ले जाते है॥
जो ट्रेनों में कभी आये थे।
आज प्लेनों में ही जाते है॥
घुस- घुस कर ट्रेनों में।
लोग ही लोग आये है॥
वे अपने बड़े-बड़े बैगों में।
किताबे भर-भर लाए है॥


लेख़क: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर
"संपादक ", बाल सजग

1 टिप्पणी:

vallabh ने कहा…

sateek likha.. badhai..