धर्म -धर्म क्यों करते हैं ?
धर्म जाति पर मरते हैं,
धर्म के खातिर मरने वाले ....
इस वतन के हैं जो रखवाले,
धर्म किसी का हिन्दू.....
धर्म किसी का मुस्लिम,
धर्म किसी का सिक्ख....
धर्म किसी का इसाई,
धर्म सभी का अलग -अलग हैं.....
सभी की रंघो में खून तो एक हैं,
हाथ पैर सब कुछ तुम्हारे हैं......
हाथ पैर सब कुछ मेरे भी हैं,
सबके कोई न कोई अपने हैं....
हर एक मानव के भी सपने हैं,
इस सपने को हम कैसे पाये....
आओं हम सब आपस में मिल जाये ,
धर्म जाति का भेद भुलाए.....
आपस में एक का मेल बढाए.....
लेखक आशीष कुमार कक्षा ८ अपना घर कानपुर
8 टिप्पणियां:
अति सुन्दर...अभिव्यक्ति । सच्चाई को उजागर करती स्तरीय रचना परोस कर आपने पाठकों पर बड़ा उपकार किया है।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
------------------------------
निज व्यथा को मौन में अनुवाद करके देखिए।
कभी अपने आप से संवाद करके देखिए।।
जब कभी सारे सहारे आपको देदें दग़ा-
मन ही मन माता-पिता को याद करके देखिए।।
क्षेत्र-भाषा-जाति-मजहब सब सियासी बेडि़याँ-
इनसे अपने आप को आजाद करके देखिए।।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
शाबास..बहुत बढ़िया संदेश:
आओं हम सब आपस में मिल जाये ,
धर्म जाति का भेद भुलाए.....
आपस में एक का मेल बढाए....
बेहतरीन...खूब लिखो.
बढिया संदेश .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
Asheesh ne sach likha hai---ek behatareen sandesh parak kavita--aj hamare desh ke bachcho men aisee hee
bhavana laane kii jaroorat hai.
अखण्ड भारत मे सर्वप्रथम धर्म था ना कि जाति
जो धर्म था वो हिन्दु आज जो है वो जाति मान लिया गया
अखण्ड भारत मे सर्वप्रथम धर्म था ना कि जाति
जो धर्म था वो हिन्दु आज जो है वो जाति मान लिया गया
अखण्ड भारत मे सर्वप्रथम धर्म था ना कि जाति
जो धर्म था वो हिन्दु आज जो है वो जाति मान लिया गया
लाजवाब सदेश
एक टिप्पणी भेजें