"मजदूर "
इस खुले आसमान के नीचे ,
लाखों मजदूरों को रात बितानी है|
आज तो दिन गुजार लिया,
पर कल कैसे गुजरोगे |
न जाने कैसे अपने बच्चों का पेट पालोगे,
जाने कैसे कल की शाम गुजरोगे|
हर बार सवाल ये आता है,
पर दिल दब कर रह जाता है|
परेशानी तो नजर आती है ,
पर देखकर नजरअंदाज कर जाते है|
इस खुले आसमान के नीचे,
लाखों मजदूरों को रात बितानी है|
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा :8th
अपना घर
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