गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

कविता:"मजदूर "

"मजदूर "
इस खुले आसमान के नीचे ,
लाखों मजदूरों को रात बितानी है| 
आज तो दिन गुजार लिया,
पर कल कैसे गुजरोगे |  
न जाने कैसे अपने बच्चों का पेट पालोगे,
जाने कैसे कल की शाम गुजरोगे| 
हर बार सवाल ये आता है,
 पर दिल दब कर रह जाता है| 
परेशानी तो नजर आती है ,
पर देखकर नजरअंदाज कर जाते है| 
इस खुले आसमान के नीचे,
लाखों मजदूरों को रात बितानी है| 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

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