गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

कविता :"बीत गई बाते "

"बीत गई बाते "
यह फूल खिले कलियों से,
कलयुग का जमाना था | 
जो बीत गए बाते,
उससे हमे क्या बेगाना था | 
हुआ सुबह लालिमा छाया,
पल भर में यह अहसास हुआ | 
जो बीत गया,
उसे लेकर क्या रोना था| 
यह फूल खिले कलियों से,
कलयुग का जमाना था| 
सोचा था जिसे अपना,
वह अपना नहीं पराया निकला| 
जो बीत गए बाते,
उससे हमे क्या बेगाना था 
कवि :नवलेश कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

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