"बीत गई बाते "
यह फूल खिले कलियों से,
कलयुग का जमाना था |
जो बीत गए बाते,
उससे हमे क्या बेगाना था |
हुआ सुबह लालिमा छाया,
पल भर में यह अहसास हुआ |
जो बीत गया,
उसे लेकर क्या रोना था|
यह फूल खिले कलियों से,
कलयुग का जमाना था|
सोचा था जिसे अपना,
वह अपना नहीं पराया निकला|
जो बीत गए बाते,
उससे हमे क्या बेगाना था
कवि :नवलेश कुमार ,कक्षा :10th
अपना घर
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