बुधवार, 24 अप्रैल 2024

कविता :"नींद "

 "नींद "
सोया था मैं न जाने कहाँ ,
सपना खोया था मेरा जंहा | 
सबकुछ छूटता जा रहा है,
मेरा लक्ष्य मुझसे रूठता जा रहा है | 
मै ढूंढ रहा हूँ अपने आप को ,
वही फूर्ति और ऐहसास को | 
मै पूरा जोर लगा दूंगा ,
अपने सपने को अपना बना लूंगा | 
सोया था मै न जाने कंहा ,
सपना खोया था मेरा जंहा | 
कवि :कुलदीप कुमार , कक्षा :12th 
अपना घर 

कोई टिप्पणी नहीं: