" आज मैं खुद को क्या कहु "
आज मैं खुद को क्या कहु |
न रहने का तरीका आता ,
न बात करने का ढ़ग |
पर हर कठिनाइयो में खड़े रहते हम ,
न खाने का खाना रहता |
न सोने के लिए घर ,
फिर भी हौसलों से बढ़ते रहे हम |
आज जो भी हूँ ,
हर कठिनाइयो से गुजरा हूँ |
मुझे माता -पिता और शिक्षक का साथ मिला ,
आज मैं खुद को क्या कहु |
कवि : रविकिशन कुमार , कक्षा : 12th
अपना घर
4 टिप्पणियां:
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (9-09-2021 ) को 'जल-जंगल से ही जीवन है' (चर्चा अंक 4182) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
वाह! बहुत ही शानदार रचना......
इतनी छोटी उम्र में इतनी बेहतरीन रचना... वाह
बहुत सुंदर रचना।
उम्मीद करते हैं आप अच्छे होंगे
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