गुरुवार, 16 सितंबर 2021

कविता : "हक"

"हक"

 हम से वह हक छीना गया | 

जिस पर मेरा हक था ,

मेरे पैरो को रोका गया | 

जिस पथ पर मेरा हक था ,

सब ने मुँह मोड़ लिया | 

मेरे चीखने व चिल्लाने पर ,

उसने हमारा घर उजाड़ दिया | 

जिस पर रहने का का हक था ,

उसने देश देश से निकाल दिया | 

जिस देश में रहने का हक था ,

जिस ने खून की नली बहा दी | 

उसी पर मेरा शक था ,

कवि : सुल्तान कुमार ,  कक्षा : 7th 

अपना घर

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