गुरुवार, 26 नवंबर 2020

कविता:- मै एक विचित्र दुनियाँ में हूँ

 "मै एक विचित्र दुनियाँ में हूँ"
मै एक विचित्र दुनियाँ में  हूँ।
जो मैंने पूरी अभी देखी नहीं।।
मै एक छोटी जगह से हूँ।
जहाँ छोटे से उम्र से पल बढ़कर।।
अस्सी साल तक मुश्किल से जी पते है। 
सारी जिंदगी वही बिता देते है।।
मै एक विचित्र दुनियाँ में हूँ।
जहा शिक्षा के बिना जिंदगी अधूरी है।।
सपने तो बहुत देखे थे।
 पर वक्त ने साथ नहीं दिया।।
मै जीने की बहुत बार कोशिश की। 
पर समय के साथ बदलते रहे।।
मुझमे जीने की साहस थी।
पर खुद को खोता रहा।।
मै एक विचित्रा दुनियाँ में हूँ।
जो मैंने अभी देखी नहीं है।।
 पर कम्बखत वक्त के साथ।
मुझे अलविदा कहना पड़ा।। 
मै एक विचित्र दुनियाँ में हूँ।
कविः- शनि कुमार, कक्षा -9th, अपना घर, कानपुर,
 
कवि परिचय :- ये शनि कुमार है। जो बिहार के रहने वाले है। इस समय अपना घर हॉस्टल में रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहे है।  ये पढ़ने में बहुत अच्छे है।ये पढ़ लिखकर अपने परिवार और समाज के लिए काम करना चाहते है। इनको कविता लिखना पसन्द है।
 
 
 
 

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