सोमवार, 2 नवंबर 2020

कविता :-काली झुलफो सा सहलाता मौसम

"काली झुलफो सा सहलाता मौसम"
काली झुलफो सा सहलाता मौसम।
दूर करने आयी है सरे गम।।
बहती पवन में पानियो सा किलकार।
जो सैर कर आयी पूरा संसार।।
हर तरफ है बस मैसम का बहार।
हवाएं पेड़ो को झकझोरती है।।
पत्तों को बिखेरती है।
मेरे ख्यालो को को भटकाकर बहती रहती है।।
हवा के झरोखो से पत्तियाँ आपस में लड़कर।
टूट बिखर जाती है।।
 पर आह की आवाज तक नही आती है।
हवा के चलने से गूंजती है सरसराहट की आवाज।।
मनो गीत गए रही हो पत्तियाँ एक साथ।
काली झुलफो सा सहलाता मौसम।।
दूर करने आयी है सरे गम। 
कविः देवराज कुमार ,कक्षा -10th ,अपना घर , कानपुर ,


कवि परिचय : यह हैं देवराज जो की बिहार के रहने वाले हैं।  और अपना घर में रहकर  ये पढ़ाई कर रहे हैं।  देवराज पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं। | देवराज डांस बहुत अच्छा कर लेते हैं। और साथ ही साथ  अच्छी कवितायेँ भी लिख लेते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: