शनिवार, 16 मई 2020

कविता :हवा चली ठंडी -ठंडी

" हवा चली ठंडी -ठंडी "

हवा चली जब ठंडी -ठंडी 
मन को यूँ ही मोह गया,
इस गर्मी से राहत ये दे गया | 
हवा चली जब ठंडी - ठंडी 
दिन में गर्मी ने कर दिया बेहाल,
रात में भी चैन न आए फ़िलहाल | 
बस हवा के भरोसे बैठे रहते,
गर्मी काटने के पल पल को गिनते | 
चलती है जब ये ठंडी -ठंडी हवा,
ऐसा लगता है यह है एक दवा | 
हवा चली जब ठंडी -ठंडी,
लगता है जग चुकी है मण्डी | 

कवि : संजय कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक "हवा चली ठंडी -ठंडी" संजय के द्वारा  लिखी गई है जो की झारखण्ड के रहने वाले हैं और अपना घर नामक केंद्र में रहकर  अपनी पढ़ाई  करते हैं | संजय को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है और अभी  तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | पढ़ाई के प्रति बहुत ही गंभीर रहते हैं और चेस खेलना अच्छा लगता है 

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