रविवार, 12 अप्रैल 2020

कविता :आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ

" आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ "

 भीड़ भाड़ की जिंदगी में
लोगों जीना दुस्वार हो गया,
वो क्या सोचते है क्या करते हैं
सब  एक जैसा हो गया |
गरीबी ,अमीरी की तुलना में
बस यूँ ही लड़ते हैं,
यह  मेरा है ,यह तेरा है
इस बात के लिए झगड़ते हैं |
दूसरे को ठोकर मार बोलते हैं
अब उन्नति  की ओर बढ़ेगा,
क्या अपने कभी सोचा कि
बच्चों पर क्या असर पड़ेगा |
क्यों मजदूरों के अरमां  को पत्थर मार
अपने घरों में सपने सजाते हैं,
उन्हीं  हाथों से दीवारों की ईंटें बनी
यह बात क्या आप भूल जातें हैं |
अब  लड़ाइयों को छोड़ना होगा,
एक दूजे से प्रेम से बोलना होगा |
एक नई दुनियाँ की ओर कदम बढ़ाएँ
आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ | |


कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th ,  अपना घर

कवि परिचय :  यह कविता जिसका शीर्षक "आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ " प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है | प्रांजुल को गणित के सवाल और नई चीजों को सीखना बहुत अच्छा लगता है | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना अच्छा लगता है | 

  



कोई टिप्पणी नहीं: