सोमवार, 21 जनवरी 2019

कविता : भगवान मेरा कसूर क्या है

" भगवान मेरा कसूर क्या है "

हे भगवान मेरा कसूर क्या है,
मैंने ऐसा किया ही क्या है |
हे भगवान् मेरा कसूर क्या है,
छोटी से ही सड़क पर पला हूँ |
रो - रोकर सुखाया अपनी गला है,
बड़े नसीब से पिने का पानी मिला है |
गर्मियों में एक बूँद ठंडे पानी के खातिर,
घर घर भटकती फिरती हूँ |
कहीं अगर जूठी बोतल मिले,
झट से पानी पि जाती हूँ |
श्रुति ऋतुओं का भी क्या,
हे भगवान मेरा कसूर क्या है |

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर



कवि परिचय : यह हैं देवराज जिन्होंने यह कविता लिखी है | देवराज को हमेशा कुछ सिखने की ललक रहती है | देवराज को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और लगभग इन्होने बहुत सी कविताये लिख चुके हैं | देवराज डांस भी बहुत अच्छा कर लेते हैं |




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