" गर्मी "
ये तपती हुई गर्मी,
जैसी उलग रही हो आग |
दिन पे दिन बढ़ता है पारा,
इस गर्मी में क्या करें |
ये मनुष्य भी बेचारा,
दिन भर मनुष्य करते काम |
न धूप का पता,
न गर्मी का अहसास |
सारा दिन झेलता इसकी मार,
इससे मनुष्य हो जाते परेशान |
लेकिन गर्मी कम होने का नाम न लेती,
पूरे गर्मी भर केवल गर्म हवा है देती |
कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर
कवि परिचय : यह है नितीश जिन्होंने यह कविता लिखी हैं | नितीश मुख्य रूप से बिहार के निवासी है परन्तु अपना घर में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है और वह अभी तक बहुत सी कविताएँ लख चुके हैं | नितीश पढ़ लिखकर एक रेलवे डिपार्टमें में काम करना चाहते हैं | हमें उम्मीद है की नितीश आगे चलकर एक महान कवि बनेंगे |
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