"मेरी चाह"
मेरी हर चाह एक ऐसा हो,
दुनिया में हर एक जैसा हो ।
हर गरीब की एक छाया हो ,
जहाँ में बंधु और भाईचारा हो ।
कंही दुःख का कोई नाम न हो,
खुशियों से भरा हर शाम हो ।
दुनियां में हर किसी का नाम हो ,
जिंदगी में हर कोई महान हो ।
कवि: विक्रम कुमार, कक्षा 6th, अपना घर, कानपुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें