शनिवार, 25 दिसंबर 2010

कविता :बाँस के नीचे साँप

बाँस के नीचे साँप

बाँस के नीचे था एक साँप
जो बैठे वहाँ पर रहा था काँप
कंपन के कारण हिल रही थी गर्दन
जिसके कारण वहीं पे होने लगा अपरदन
अपरदन होने से टूटा एक बाँस
जिससे वहीं पर साँप की रुक गयी सांस
बाँस के नीचे था एक साँप
जो बैठे वहां पर रहा था काँप

लेख़क :ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर

3 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

सुन्दर बाल गीत ..

Mrityunjay Kumar Rai ने कहा…

average

vallabh ने कहा…

achchha likha Gyaan...keep it up...