शनिवार, 4 सितंबर 2010

कविता कब चेतोगे

कब चेतोगे
एक सज्जन खा रहे थे खाना ,
खाने में था कड़ी और चावल.....
खाते चले जा रहे थे,
कुछ नहीं देख रहे थे....
जो भी आ रहा था,
गिर रहा था उनकी थाली में....
उनको कुछ होश नहीं था,
न ही वो देख रहे थे .....
अचानक एक मक्खी आयी ,
गरदन में उनके घुस गयी.....
झट से उनको पलती हो गयी,
अटक गयी उनके गरदन में मक्खी .....
पहुचे अपने घर के अन्दर,
निकालो जल्दी मेरी गरदन से मक्खी ....
नहीं तो हम मार जायेगे जल्दी....
लेखक अशोक कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

2 टिप्‍पणियां:

Jandunia ने कहा…

सुंदर रचना

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छी सीख..धीरे धीरे देख देख कर चबा कर खाना चाहिये.

शाबास!