बुधवार, 11 नवंबर 2009

कविता क्रोध

क्रोध
क्रोध बना देता है पागल ,
क्रोध कभी मत करना ...
क्रोध अगर आ ही जाए तो ,
जल पीकर चुप रहना ...
क्रोध जगे तो कुछ मत करना ,
साँस देखने लगना ...
बाहर भीतर आती जाती ,
साँस देख चुप रहना ...
इसमें सबका भला छिपा है ,
वरना तुम्हारा होगा बुरा ...
लेखक प्रदीप कुमार अपना घर

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है-
http://anand.pankajit.com/2009/11/blog-post_1977.html?showComment=1258030352691#c4964755205651305557

Deendayal Singh ने कहा…

bahut acha likha hai aapne asha karte hai ki aap aisa hi likhte rahenge. aur apne gusse per kabu rakhkenge