गुरुवार, 26 सितंबर 2024

कविता:"लापरवाह हूँ मैं

"लापरवाह हूँ मैं "
हवाओ के लिए हवा हूँ मै,
पर जिम्मेदारिओं के लिए लापरवाह हूँ मै| 
जैसे-जैसे ही उम्र बढ़ रहा है,
जिम्मेदारिओं का सिलसिला चढ़ रहा है| 
सोचता हूँ करूंगा हर चीज,
पर समझ नहीं आता की क्या करून मै| 
आख़िरकार लापरवाह हूँ मै,
सपने तो सजाये थे बहुत बड़े-बड़े| 
पर उनके समस्यांओ के लिए कभी नहीं लड़े,
मौज मस्ती में ही दिन कट गए सब| 
तब जाकर देखा की कंहा हूँ मै ,
आख़िरकार लापरवाह हूँ मै | 
कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

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