शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

कविता:- मिट्टी के खिलौने

 "मिट्टी के खिलौने"
बचपन में सजाए थे जो सपने।
आज भी याद आते है मिट्टी के खिलौने।।
धरती को भेदकर जिस तरह मैंने बनाया। 
अपने छोटे हाथों से इसे सजाया।।
बचपन में आए जो विचार। 
उन्ही के अनुरूप दिया मैंने आकार।।
क्यों एक हाथ एक पैर बन जाते थे छोटे। 
क्यों वो छोटी आँखे बन जाते थे मोटे।।
 बिना पकाए युही  धूप दिखया। 
इन्ही खिलौने से बचपन बिताया ।।
 मिट्टी खिलौने अब छूटने लगे है। 
सजाये हुए सपने अब टूटने लगे है।।
कितने अच्छे दिन थे वो अपने।
जब मै बनता था मिट्टी के खिलौने।।
 कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,

कवि परिचय :- यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और कानपुर के अपना घर नामक संस्था में रहकर अपनी पढाई कर रहे हैं।  प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है।  प्रांजुल पढ़कर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और फिर इंजीनियर बनकर समाज के अच्छे कामों में हाथ बटाना चाहता हैं। प्रांजुल को बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है।
 

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