गुरुवार, 20 जून 2024

कविता :"गहराइयाँ "

"गहराइयाँ "
गहराइयाँ अब बढ़ रही है ,
हर राज को छुपा रही है | 
शामे ढल रही है ,
कुछ तो खो रही है | 
गहराइयाँ अब बढ़ रही है ,
ढूढ़ती आँखों में आँसू | 
होती सिसकियाँ बेकाबू ,
हालात अब बदल रहे है | 
बंजारे बन चल रहे है ,
गहराइयाँ अब बढ़ रही है | 
दूरियां खुद से ही बढ़ रही है ,
बढ़ती हुई उम्मीदों को रोक रही है | 
गहराइयाँ अब बढ़ रही है ,
कवि :साहिल कुमार, कक्षा :8th 
अपना घर 

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