सोमवार, 14 अगस्त 2023

कविता :"छवि "

"छवि "
 अपनी छवि को देख देख | 
सही गलत समझ नहीं पा रहा हूँ 
अब छोटी छोटी बातों में भी | 
उदास रहने लगा हूँ 
कभी कभी सोचता हूँ | 
कि अपने भूत भूल जाऊँ 
पर जितना भूलना चाहता हूँ |
 उतना ही याद करने लगा हूँ 
भविष्य में क्या करना है | 
ये भी नहीं सोच  रहा हूँ 
जब भी उनकी तस्वीर देखता हूँ | 
तब तब रोने लगा हूँ 
कवि :महेश कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 

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