शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

कविता : " मैं निकला हूँ अपने तालाश में "

" मैं निकला हूँ अपने तालाश  में "

 मैं निकला हूँ अपने तालाश  में |

कोई नजर नहीं आता आस -पास में ,

कहाँ खो बैठा उनको | 

जो रहता था मेरे पास में ,

मैं निकला हूँ अपने तालाश में |

भूखे प्यासे घूमता रहता हूँ ,

खोजने की कोशिश करता हूँ | 

मैं रहना चाहता था उसको पास में ,

मैं निकला हूँ अपने तालाश में | 

कवि : कामता कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर 

कोई टिप्पणी नहीं: