मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

कविता : "गरजता है बरसता नहीं "

"गरजता है बरसता नहीं "

 गरजता है | 

बरसता नहीं ,

चक्कर घिन्नी -सा घूमता रहता है | 

माथे पर हर बार ,

जाने कहाँ से लेकर आया है | 

वो अपना रंग हर कोई दुसता है ,

आसमान में ठहर गए है | 

बादल अपनी मर्जी का मालिक है ,

गरजता है | 

बरसता नहीं,

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर  

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