"बल मजदूर "
नाजुक हाथों ने क्या कर दिया पाप,
जन्म से ही दे दिया कामों का वनवास |
कलियों जैसी खिलने वाले उस मासूम,
जिंदगी को कर दिया तबाह |
हर बचपन के लम्हों को,
हर सजाये हुए सपनों को |
दो मिनुट में कर दिया राख,
दर्दनाक जिंदगी उसे तडपा दिया |
बचपन के खिलौनों की जगह,
जिंदगी से लड़ना सिखा दिया |
पेन ,किताब और कॉपी की जगह,
कम का बोझ इर पर लाद दिया |
नाम : विक्रम कुमार , कक्षा : 7 , अपनाघर
6 टिप्पणियां:
नहीं पूछूँगी कि इतना अच्छा कैसे लिख लेते हो...क्योंकि जानती हूँ मैं कि परिस्थितियाँ बचपन में ही बड़ा बना देती हैं। खूब पढ़ो, आगे बढ़ो...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 06 दिसम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत अच्छा बेटा आप पहले ही इस सत्य से परिचित हो गए। चलो अच्छा है सपनों वाली रचनाओं से बच गए ,सत्य का ज्ञान जितना शीघ्र हो जाये अच्छा होता है। लिखते रहिये ! ढेरों शुभकामनायें
Bahut Sunder....Khoob Likho....khoob Badho
सुन्दर!!
बहुत सुन्दर....
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