" होली "
रंग भरी पिचकारी लाई,
होली आई होली आई ।
रंग भरे इस त्यौहार में,
रंगों की बौछार में ।
भीगे है अपने बदन ,
होली में है सब मगन ।
अबीर गुलाल और चली पिचकारी,
रंगों की गोलिया है भारी ।
छुप छुप कर तुम रह जाओगे,
रंगों से कैसे बच पाओगे ।
पूरा शरीर रंग रंगीला,
हरा , लाल और पीला ।
ख़ुशी भरी आहार में ,
रंगों की बौछार में ।
कवि : प्रांजुल कक्षा :7th अपना घर
कवि का परिचय: प्रांजुल "अपना घर" परिवार के सदस्य है। ये छत्तीसगढ़ के रहने वाले है। इनका परिवार निर्माण कार्य में प्रवासी मजदूर का कार्य करते है. प्रांजुल यंहा "आशा ट्रस्ट" के कानपुर केंद्र "अपना घर" में रहकर, शिक्षा ग्रहण कर रहे है। वर्तमान में ये कक्षा ७ के छात्र है। प्रांजुल को कवितायेँ लिखना अच्छा लगता है। क्रिकेट के दीवाने है, प्रांजुल को खेलना बहुत पसंद है। हमें उम्मीद है कि आपको इनकी ये नवीन रचना पसंद आएगी।
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