"आंधी के अवतार में "
कभी धीमी - धीमी रफ़्तार में ,
तो कभी आंधी के अवतार में ,
अरे! साहिल क्या रंग - रूप है तेरा ,
कभी शीतल मधुर लय - ताल में,
तो कभी गर्मी लू के भेश में,
अरे! पवन तू कैसा परिंदा है,
कभी पूर्व से,
तो कभी पक्षिम से,
क्यों टपक पड़ता है बार - बार,
चलो माना तू है ही ऐसा,
फिर भी सुनते जाना रे,
मेहमान तू जैसा भी हो,
पर तिथि के हिसाब से आना रे।
तो कभी आंधी के अवतार में ,
अरे! साहिल क्या रंग - रूप है तेरा ,
कभी शीतल मधुर लय - ताल में,
तो कभी गर्मी लू के भेश में,
अरे! पवन तू कैसा परिंदा है,
कभी पूर्व से,
तो कभी पक्षिम से,
क्यों टपक पड़ता है बार - बार,
चलो माना तू है ही ऐसा,
फिर भी सुनते जाना रे,
मेहमान तू जैसा भी हो,
पर तिथि के हिसाब से आना रे।
कवी : पिंटू कुमार, कक्षा : 10th,
अपना घर
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