बुधवार, 7 मई 2025

कविता : " ये बचपन जवाब माँगता है "

 " ये बचपन जवाब माँगता है  " 
 ये गरीबी भी कितनी कड़क है। 
जो उम्र तक का लिहाज नहीं करती। 
उन बच्चो को जिनको स्कूल में होना चाहिए। 
भरी दोपहर कंश्टूशन में काम करते है। 
क्या सो गया है जहाँ सारा। 
या खो गया ज्ञान सारा। 
क्यों ये सवाल खटक जाता है। 
ये बचपन उनका जवाब मांगता है। 
हर किसी से पूछता है। 
क्या विद्यालय छुप गया है। 
या मिट्टी में मिलकर खो गया है। 
क्यों ये सवाल कटक जाता है। 
ये बचपन उनका जवाब माँगता है। 
क्या सारी किताबे जल गई है। 
या कही आसमान में खो गया है। 
डूब गई है सारी कलमे। 
या टूट गई है सारी दावाते  (स्याही )। 
क्या ये सवाल कटक जाता है। 
बचपन उनका जवाब माँगता है क्यो है। 
क्यों है ये गरीबी है। 
जो उम्र भर लिहाज नहीं रखते है। 
कवि : गोविंदा कुमार, कक्षा : 9th, 
अपना घर।  
 

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