रविवार, 28 मई 2023

कविता :" रूठ गई वह डाली "

" रूठ  गई वह डाली " 
रूठ  गई वह डाली | 
जिसपर फूल खिले थे वह निराली, 
सुबह की वह किरण जो कर देती मन को हरियाली|  
वह आज दिख नहीं  रही है ,
कौन सी मौसम बन गई उसके लिए पराई|  
पूछ रही है वह सब से क्या हमने कुछ गड़बड़  दी भाई, 
जिंदगी हो गई  मौत | 
पलंग बनकर निभाता है, 
जिंदगी में आखिरी समय पर भी|  
तुम्हारे शरीर को पावन कर आता हूँ, 
फिर भी मेरी जिंदगी की ऐसी मजाल|  
उखाड़ने के लिए है  बेक़रार ,
कब पहुंचेगी मेरी लफ्जों को गहर|  
तुम्हारे हर एक सांसो में है मेरे जीवन का संसार, 
फिर क्यों रूठ गई वह डाली | 
जिस पर फूल खिले थे ,वह निराली|   
कवि :विक्रम कुमार ,कक्षा :12th
अपना घर  

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