बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

कविता:- मेरी चाह है घूमू ,खेलूं

"मेरी चाह है घूमू ,खेलूं"
मेरी चाह है घूमू ,खेलूं।
जो पसंद आये सब ले लूँ।। 
कहानियों की दुनियाँ में डूब जाऊ।
भरे समंदर में उछलकर डुबकी लगाऊं।।
बाग बगीचों में इतराऊं।
भारी परिस्थियों में भी डट जाऊं।।
औरों के साथ खुशियाँ बांटू।
अपने अरमानों में चार चाँद लगाऊं।
फूलो की खुशबू में ढल जाऊं।।
  कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,


कवि परिचय :- यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और कानपुर के अपना घर नामक संस्था में रहकर अपनी पढाई कर रहे हैं।  प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है।  प्रांजुल पढ़कर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और फिर इंजीनियर बनकर समाज के अच्छे कामों में हाथ बटाना चाहता हैं। प्रांजुल को बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है।

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