ठंडी
ठंडी में जब हुआ सबेरा
उठने का मन न करता मेरा
रजाई से न निकलना चाहूँ
जल्दी चावल मैं ना खाऊं
रोटी को मैं खूब चबाऊं
शाम को रजाई तानकर
सो जाऊं मन कहता मेरा
ठंडी में जब हुआ सबेरा
पहरेदार भी न डालता पहरा
ठंडी ये क्या बात है तेरा
ठंडी किसी की मन को न भाता
काम करने वाले ठिठुर - ठिठुर रह जाते
बालकवि - देवराज
कक्षा - ४ th
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