मुकाम पा लिया
भोर का समय था ,
मैं जा रहा था राहों से .....
सून- सान थी सारी जगह ,
मैं डर रहा था तम के गर्दिश में .....
सहसा चली पवन तीव्रता से ,
भागे काले मेघ डरकर ....
खिल उठा रवि हंसकर ,
मन से निकला मेरे डर .....
पवन थी इतनी ठंडी ,
ताजगी भर गयी मेरे जीहान में ....
आगे बढ़ा तो एक तितली आयी ,
आ बैठी मेरे हाथ में ......
कितने वर्णों की थी ,
की मैं कुछ कह नहीं सकता .....
देख - देख मैं खूब हंसता ,
उसकी सुन्दरता के बारे में सबसे कहता .....
जिस कार्य से निकला था ,
वह कार्य मैं तो भूल गया .....
आ गयी मेरी मंजिल ,
मैने अपना मुकाम पा लिया ...
लेखक -आशीष कुमार
कक्षा -१०
अपना घर
भोर का समय था ,
मैं जा रहा था राहों से .....
सून- सान थी सारी जगह ,
मैं डर रहा था तम के गर्दिश में .....
सहसा चली पवन तीव्रता से ,
भागे काले मेघ डरकर ....
खिल उठा रवि हंसकर ,
मन से निकला मेरे डर .....
पवन थी इतनी ठंडी ,
ताजगी भर गयी मेरे जीहान में ....
आगे बढ़ा तो एक तितली आयी ,
आ बैठी मेरे हाथ में ......
कितने वर्णों की थी ,
की मैं कुछ कह नहीं सकता .....
देख - देख मैं खूब हंसता ,
उसकी सुन्दरता के बारे में सबसे कहता .....
जिस कार्य से निकला था ,
वह कार्य मैं तो भूल गया .....
आ गयी मेरी मंजिल ,
मैने अपना मुकाम पा लिया ...
लेखक -आशीष कुमार
कक्षा -१०
अपना घर
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