सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

 शीर्षक :- आज की फिल्मे
आज की फिल्मे तो आदर्श बनी पड़ी है....
युवा पीढी को भड़काने में |
ऐसे अश्लील से शब्द है....
हर किसी न किसी फ़िल्मी गानों में |
वर्तमान में फिल्मो का ऐसा पड़ा है, सब पर असर....
कि चारो ओर चल रहा है, फिल्मो का ही कहर |
मुन्नी से लेकर शीला की जवानी....
हर बच्चे की जुवां पर है, अजब प्रेम की गजब कहानी |
डायेरेक्टर भी तो कहते है, क़ि लोंगो की जैसी मांग....
वैसी हम करेंगे उनकी पूर्ति |
दुकानदार का कम है, बीडी तम्बाकू को बेचना....
तो तुम अपने आप को रोको मत खाओ सुरती |
मां बाप मना करें तो नहीं मानते बच्चे....
बातें कहेंगे ऐसी जैसे वह सबके चच्चे |
शौक है उनका फिल्म मोबाईल रख गाड़ी से चलना....
और रातों दिन है, मोबाईल से बातें करना |
कवि :- आशीष कुमार
कक्षा :-10
अपना घर 


1 टिप्पणी:

-आशीष अग्रवाल ने कहा…

अति उत्तम ..अपनी भावनाओं को शब्दों के माध्यम से बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है आपने :)

-आशीष अग्रवाल