रविवार, 3 अक्टूबर 2010

कविता :वो हामिद कहाँ है

वो हामिद कहाँ है

मेला वही है ,
ईद वही है ....
चूल्हा वही है ,
दादी वही है ....
आज भी अगुंलियाँ ,
जलती दादी की हैं ....
आखों में उसके ,
समंदर भरा है ....
मगर आज अपना ,
वो हामिद कहाँ है ....
इस भीड़ में ,
वो खोया कहाँ है ....


लेख़क : महेश
अपना घर

2 टिप्‍पणियां:

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

aapki is kavita ne to us nanhe hamid ke chhote se magar prem v sneha se bhare nishchhal bachpan ke anuroop kiye gaye tyaag ki yaad dila kar bhav vibhor kar diya.
bahut -bahut aabhar----
poonam

रानीविशाल ने कहा…

बहुत सुन्दर
नन्ही ब्लॉगर
अनुष्का