मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

कविता बेसहारा

बेसहारा
कोई क्या जाने उनकी बात ,
रहना जिनका हैं फुटपाथ ....
चलते रहते सड़क सड़क पर,
थकते नहीं वे भटक भटक कर.....
गुजरती सड़क पर उनकी रातें,
करते नहीं लोग उनसे बाते....
बचपन से होते बेसहारा,
देता नहीं घर में कोई सहारा ....
मिट सकता हैं यह अभिशाप,
लोग जब देगे उनका साथ....
लेख़क समीर सिंह S.V.V.लोधर कानपुर

1 टिप्पणी:

रानीविशाल ने कहा…

सुन्दर सन्देश देती बहुत गहरे भावों वाली कविता ....आभार !
अनुष्का