गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

कविता : ईमान

ईमान

सारे शहर में मचा हैं शोर ,
चारो ओर छायी संकट की घटा घन घोर.....
कौन हैं ईमानदार कौन हैं बेईमान,
इसका पता लागाए कौन.....
मुझको तो सभी हैं दिखते इंसान ,
नहीं बना किसी के माथे पर कोई निशान.....
कि यह हैं ईमानदार या बेईमान,
न ही उसकी कोई और पहचान.....
यह जीवन जीना हैं बड़ा मुश्किल,
इसको जीने के लिए सुख दुख करना होगा तुम को शामिल....
नहीं किसी का जुल्म चलेगा और न ठेकेदारी,
चाहे जितना कठिन हो काम करेगे भारी से भारी....
इस जंग में रहने वाले सभी हैं इंसान,
नहीं किसी के आगे झुकना मन में यह लो ठान .....
न बनी हैं आन बनी हैं सबका ईमान,
ऐसा na करना काम जिससे हो सभी इंसान बेईमान .....
लेख़क : आशीष कुमार
कक्षा : ८
अपना घर , कानपुर

2 टिप्‍पणियां:

रानीविशाल ने कहा…

बहुत अच्छी कविता लिखी है ,आशीष भैया आपने ...बधाई !
अनुष्का

Chinmayee ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है ...