अब न गुस्सा करूँगा भाई.....
ऐसी खवाई जिसने की रोटी खाई.
उसकी खवाई मेरी समझ में नहीं आई..
रोटी खाकर उसने ली जब अंगडाई.
उसकी खटिया बड़ी जोर से चरमराई..
जब देखा उसने खटिया से उठकर.
चारो पाये अलग गिरे टूटकर ..
खटिया में लगी थी नकली लकड़ी.
गुस्से में उसने बीबी की चोटी पकड़ी..
पत्नी रोई, चिल्लाई खूब शोर मचाई.
इस झगड़े में बीबी को खो गई बाली..
बीबी बोली ढूंढ़कर दो मेरी बाली.
नहीं तो यह घर हो जायेगा खाली..
उसने बीबी को किसी तरह मनाया .
सोनार से सोने की बाली बनवाया ..
कान पकड़ कर उसने कसम खाई.
अब किसी से गुस्सा नहीं करूँगा भाई..
ऐसी खवाई जिसने की रोटी खाई.
उसकी खवाई मेरी समझ में नहीं आई..
रोटी खाकर उसने ली जब अंगडाई.
उसकी खटिया बड़ी जोर से चरमराई..
जब देखा उसने खटिया से उठकर.
चारो पाये अलग गिरे टूटकर ..
खटिया में लगी थी नकली लकड़ी.
गुस्से में उसने बीबी की चोटी पकड़ी..
पत्नी रोई, चिल्लाई खूब शोर मचाई.
इस झगड़े में बीबी को खो गई बाली..
बीबी बोली ढूंढ़कर दो मेरी बाली.
नहीं तो यह घर हो जायेगा खाली..
उसने बीबी को किसी तरह मनाया .
सोनार से सोने की बाली बनवाया ..
कान पकड़ कर उसने कसम खाई.
अब किसी से गुस्सा नहीं करूँगा भाई..
लेख़क: आशीष कुमार, कक्षा 8, अपना घर
5 टिप्पणियां:
बहुत बहुत सुन्दर..
बाल मन के नए- नए रंग मिलतें हैं इस ब्लाग पर . बधाई बहुत..... सारी ..................
**अभिनव सृजन http://abhinavsrijan.blogspot.com/
**बाल -मंदिर
http://baal-mandir.blogspot.com/
बहुत सुन्दर.
बहुत सुन्दर कविता लिखी है भैया आपने ....बधाई
बहुत सुन्दर बाल प्रस्तुति..
http://bachhonkakona.blogspot.com/
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