शनिवार, 29 मई 2010

कविता :बर्बाद हो रही बिजली

बर्बाद हो रही बिजली
रोड़ों पर जल रही है बिजली ।
देखो कितनी बर्बाद हो रही है बिजली ,
बिजली को पाने के लिए ।
होते रहते शहर-गाँव में धरने तमाम ,
फिर क्यों रोड़ों पर जला रहे दिन में ।
कितनी सारी बिजली ,
बिजली से ही चल रहे कूलर येसी आदि ।
इसलिए हो रही बिजली की बर्बादी ,

लेखक :ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर

कविता :कवि सम्मेलन

कवि सम्मलेन में

आज के कवि सम्मलेन में मजा आया ।
सबने अपना कवी सम्मलेन में रंग जमाया ॥
पैसा दिया हमको याद आया ।
भागीरथ ने ही है गंगा बहाया ॥
जिसमें लोगों ने खूब नहाया ।
पैसा मिला तो गाना गाया ॥
आज कवि सम्मलेन में मजा आया ।
सबने अपना कवि सम्मलेन में रंग जमाया ॥

लेखक :सोनू कुमार
कक्षा :
अपना घर

शुक्रवार, 28 मई 2010

कविता आइसर्कीम

आइसर्कीम
आइसर्कीम हमें ला दो ,
दो रूपया हमें दे दो.....
दो रूपया मै ले जाउगा,
बर्फ की सिली लउगा....
बर्फ मै बनाऊगा,
बाजार में बेचने जाऊगा.....
पैसा कामऊगा,
बर्फ की सिल्ली लाऊगा.....
सबको आइसर्कीम खिलऊगा ,
शरीर
में ताजगी लाऊगा...
आइसर्कीम मै खाऊगा.....
लेखक मुकेश कुमार कक्षा
अपना घर कानपुर

बुधवार, 26 मई 2010

कविता :हवा चली

हवा चली

हवा चली भाई हवा चली ।
दूर-दूर तक हवा चली ॥
ठंडी गर्म है हवा चली ।
हवा चली भाई हवा चली ॥
गर्मी में तो आम गिरेगें ।
आमों के हम स्वाद चाखेगें ॥
आमों के हम पेड़ लगायेंगे ।
हवा चली भाई हवा चली ॥

लेखक :लवकुश कुमार
कक्षा :
अपना घर

मंगलवार, 25 मई 2010

कविता गर्मी

गर्मी
देखो कितनी हैं भीषण गर्मी भाई ,
४० साल का रीकड़ तोडा हैं भाई....
घर से बहार न निकालो भाई,
नहीं तो लू लग जायेगी....
पैसा रूपया खर्च होगा भाई,
घर का बिल बन जायेगा....
देखो कितनी हैं गर्मी भाई...
लेखक चन्दन कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

सोमवार, 24 मई 2010

कविता :जल

जल
नदियों कया पानी कल कल ।
आवाज करे और बहता जल ॥
पानी को सभी बचाओ ।
लोगों को इसका उपयोग बताओ ॥
अगर न होता पानी धरती पर ।
जीवन भी न होता इस पर ॥
पानी है सबका जीवन ।
ये न हो तो मुश्किल सबका जीवन॥
लोग भी पानी बर्बाद कराएं ।
पानी से पेप्सी ,कोक बनाएं ॥
जल ही देता सबको राहत ।
जल की न समझें कोई कीमत ॥

लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

रविवार, 23 मई 2010

कविता हवा चली

हवा चली
हवा चली भाई हवा चली,
दूर दूर तक हवा चली....
हवा चली भाई हवा चली,
गर्मी में तो आग गिरे....
आमो को तो हम खाये,
अपने घरों के पास पेड़ लगाये....
पेड़ पौधों को लगाने से प्रदुसन न होता,
हवा चली भाई हवा चली.....
लेखक लवकुश कक्षा अपना घर कानपुर

शनिवार, 22 मई 2010

कविता :नरेगा और आर टी आई

नरेगा और आर टी आई

आओ प्रजा सुनो प्रजा देखो प्रजा यह हाल ,
नरेगा में मिलता है कार्य हर साल ।
हर प्रजातंत्र का है ये नारा ,
हर कार्य का दाम मिलेगा पूरा-पूरा ।
नरेगा से है अब ये आशा,
अब न होगी कोई प्रजा निराशा।
प्रयोग करो रोजगार गारंटी ,
नहीं तो प्रधान और नेता बजा देंगे घंटी ।
आर टी आई से जोड़ना नाता ,
इसी से भ्रष्टाचार का होगा खुलाशा ।
आओ प्रजा सुनो प्रजा देखो प्रजा यह हाल ,
नरेगा में मिलता है कार्य हर साल ।
............ लेखक : सागर कुमार
कक्षा :
अपना घर

शुक्रवार, 21 मई 2010

कविता बिजली

बिजली क्यों नहीं देते
सुनो सुनो देखो यारो ,
हर गाँव में शहर शहर में ....
रहते हैं हजारो गाँव अंधेरे में,
क्यों रहते हैं अंधेरे में....
अगर बिजली को हैं पाना ,
यह बात बिजली कर्मचारी को बताना ....
कि पैसा तो आप बहुत लेते हैं ,
फिर आप बिजली क्यों नहीं देते हैं....
सुनो सुनो देखो यारो,
हर गाँव में हर शहर में....
रहते हैं हजारो गाँव अंधेरे में....
लेखक सागर कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता :बिजली

बिजली
सुनो यारो देखो यारो
हर गाँव में हर शहर में ॥
रहते हैं हजारो गाँव अँधेरे में ।
अगर बिजली को पाना हैं
यह बात बिजली कर्मचारी को बताना हैं ।
की पैसा तो बहुत लेते हो
फिर बिजली क्यों नहीं देते हो ।
सुनो यारो देखो यारो
हर गाँव में हर शहर में
रहते हैं हजारो गाँव अँधेरे में ॥


लेखक :सागर कुमार
कक्षा :
अपना घर

कविता :परियों की रानी

परियों की रानी
सपनों की कहानी
जिसमें थी परियों की रानी
रानी के पास थी जादू की छड़ी
चार दासी थीं उनके पास खड़ीं
हमको भूख लगी जोरों की
रानी ने ढेर लगा दी बर्फी की
बर्फी इतनी खायी,मुँह से एक जम्हाई आयी ।
जिससे प्रथ्वी पर रहने वालों की नींद भाग गयी
तभी पता चला कि यह तो एक सपना था
उस समय मैं तो बहुत ही भूखा था

लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

बुधवार, 19 मई 2010

कविता सपना

सपना
एक दिन मैंने देखा था ,
आसमान में कई रंग मिले थे....
लाल गुलाबी पीले आसमानी,
इन सब रंगों में से था....
लाल रंग बड़ा अभिमानी,
अपने को बड़ा दिलदार समझता....
बाकी को फुट पात समझता,
एक दिन जब बादल ने गरजा....
सब रंगों में तब हो गयी लड़ाई,
तब नहीं रहा कोई किसी का भई....
बादल ने जब बरसाया पानी,
सब रगों की हो गयी हैरानी....
एक दिन मैंने देखा था,
आसमान में कई रंग मिले थे....
लेखक ज्ञान कक्षा अपना घर कानपुर

मंगलवार, 18 मई 2010

साबुन की बात निराली
साबुन की हैं बात निराली ,
कोई होती हैं काली तो कोई रंगीली ....
बड़े -बड़े लोग साबुन को खूब लगते हैं,
शरीर को साफ करते हैं....
बहुत लोग एसे हैं जो साबुन,
से कोसो दूर रहते हैं....
साबुन का हैं दूसरा रूप,
आम लोग जिसको कहते हैं मिट्टी....
इसे मिटते नहीं कहना भाई,
ये गरीबो के लिए हैं....
अमिरित के सामान भाई .....
लेखक सागर कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

सोमवार, 17 मई 2010

कविता: पानी को अगर हम बचायेंगे नहीं.


पानी बिन मरेंगे हम एक दिन यंही

कितना पानी शेष बचा हैं,
कोई नहीं इसे जनता हैं....
भारत में बहुत से वासी हैं,
उसमे आधी जनता अभी भी प्यासी हैं....
मानव का जीवन हैं पानी,
हम सब बरबाद न करे एक भी पानी.....
पानी आओं हम बचाये,
व्यर्थ न करे इसको और बढ़ाये....
इसे बचाओ हम भारत वासी मिलकर,
पानी बरबाद न होने दे समझकर ....
पानी हैं सब का जीवन,
पानी को अगर हम बचायेंगे नहीं ,
पानी बिन मरेंगे हम एक दिन यंही....
लेखक आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

रविवार, 16 मई 2010

कविता -पानी को बचाओ

पानी को बचाओ

कितना पानी शेष बचा है ।
कोई नहीं इसे जाँचता है ॥
भारत में बहुत भारत वासी हैं ।
उसमें आधी जनता अभी भी प्यासी है ॥
मानव का जीवन है पानी ।
हम सब बर्बाद न करें एक भी पानी॥
आओ हम सब मिलकर कर पानी को बचाएं।
व्यर्थ न कर इसको और बढायें ॥
इसे बचाएं हम भारत वासी मिलकर ।
पानी बर्बाद न होने दें जीवन समझकर ॥
पानी है सबका जीवन साथी ।
पानी को बचाओ ,नहीं मर जायेगें सब एक दिन ॥

लेखक : आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

शनिवार, 15 मई 2010

कविता दुनियां है बड़ी

दुनियाँ है बड़ी
देखों क्या है ए दुनियाँ ,
सब कोई मनमानी करते दुनियाँ में....
सब कोई रहते दुनियाँ में,
दुनियाँ में से कोई चले जाते हैं....
दुनियाँ का नाम लेकर रह जाते हैं,
दुनियाँ हैं देखो कितनी बड़ी....
आदिमानव ने नहीं पहनी कभी घड़ी,
दोखो क्या हैं ए दुनियाँ .....
लेखक चन्दन कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

शुक्रवार, 14 मई 2010

कविता - डाक्टर आये

डाक्टर आये

डाक्टर आये डाक्टर आये,
साथ में अपने आला लाए।
ह्रदय की तरफ आला लगते है,
तब दर्द और बुखार का पता लगते है।
रात को कुछ हो जाता है,
डाक्टर सुई लगता है,
साथ में दवा दे जाता है।

नाम - जमुना कुमार
कक्षा - पांच

गुरुवार, 13 मई 2010

कविता -पेड़ लगाओ

पेड़ लगाओ

पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ ।
सब बच्चों तुम पेड़ लगाओ ॥
पेड़ लगाकर पानी बरसाओ ।
पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ ॥
पेड़ हमें आँक्सीजन गैस देते हैं ।
और कार्बनडाई-आक्साइड लेते हैं ॥
बच्चों तुम सब पेड़ लगाओ ।
पेड़ हमारे लिए हैं उपयोगी ॥
पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ ।
बच्चों तुम सब पेड़ लगाओ ॥

लेखक -जमुना कुमार
कक्षा -
अपना घर

शनिवार, 8 मई 2010

कविता -नया सवेरा

नया सवेरा
हुआ सवेरा निकला सूरज ,
पक्षी खेतों में जाते हैं....
खेतों में जाकर दाना खूब खाते हैं,
जब दुपहर हो जटी हैं....
पेड़ों में पक्षी बैठते हैं,
शाम को सूरज ढलता हैं....
सब पक्षी घर को जाते हैं,
बच्चों के साथ रहते हैं.....
चैन की नींद सोते हैं,
हुआ सवेरा निकला सूरज......
पक्षी खेतों में जाते हैं....

लेखक -सागर कुमार
कक्षा -६
अपना घर