रविवार, 23 मई 2010

कविता हवा चली

हवा चली
हवा चली भाई हवा चली,
दूर दूर तक हवा चली....
हवा चली भाई हवा चली,
गर्मी में तो आग गिरे....
आमो को तो हम खाये,
अपने घरों के पास पेड़ लगाये....
पेड़ पौधों को लगाने से प्रदुसन न होता,
हवा चली भाई हवा चली.....
लेखक लवकुश कक्षा अपना घर कानपुर

3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा संदेश देती कविता.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत प्यारी कविता..बधाई.

    _____________________
    'पाखी की दुनिया' में 'अंडमान में आए बारिश के दिन'

    जवाब देंहटाएं
  3. kavitayen bal chanchaltaon se bhri mohak hain aise he prayas karte rahen.....

    जवाब देंहटाएं