शनिवार, 29 मई 2010

कविता :बर्बाद हो रही बिजली

बर्बाद हो रही बिजली
रोड़ों पर जल रही है बिजली ।
देखो कितनी बर्बाद हो रही है बिजली ,
बिजली को पाने के लिए ।
होते रहते शहर-गाँव में धरने तमाम ,
फिर क्यों रोड़ों पर जला रहे दिन में ।
कितनी सारी बिजली ,
बिजली से ही चल रहे कूलर येसी आदि ।
इसलिए हो रही बिजली की बर्बादी ,

लेखक :ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर

5 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा है बिजली की बेवजह बर्बादी नहीं होना चाहिये

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  2. ऐसे ही लिखना पर्यावरण को बचाने में आप का भी योगदान चाहिए, अच्छी कविता.

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  3. सुन्दर कविता...सार्थक सन्देश..बधाई.


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    'पाखी की दुनिया' में रोटी का कमाल

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