गुरुवार, 30 सितंबर 2010

कविता :अरे यह जीभ भी अजीब

अरे यह जीभ भी अजीब

अरे भाई यह जीभ भी अजीब
नाक के भरोसे है
खुशबू बाहर से आती है
पानी से यह भर जाती है
अरे भई यह जीभ भी अजीब ।
जो वह आखों से देखती है
खाने को वह मांगती है
जब खाना मिल जाता है
तो pet भर जाता है
बड़ा मजा आता है

लेख़क :अशोक कुमार
कक्षा :
अपना घर

शनिवार, 25 सितंबर 2010

कविता :सुनो-सुनो माताओं और बहनों

सुनो-सुनो माताओं और बहनों

सुनो-सुनो माताओं और बहनों ।
चोरो और लुटरों से बचकर रहना ॥
अपनी रक्षा खुद ही करना ।
पुलिश को तो है अब कुछ नहीं कहना ॥
उन्हें है अब बस ड्यूटी करना ।
चोर जब चोरी कर के भागता है ॥
तो पुलिश कुछ नहीं कर पाती है ।
जब चोर पकड़ जाता हैं ॥
आधा-आधा पैसा बट जाता है ।
सुनो-सुनो माताओं और बहनों ॥

लेख़क :सागर कुमार
कक्षा :
अपना घर

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

कविता देखो आसमान में उड़ रही पतंगे

देखो आसमान में उड़ रही पतंगे
देखो भाई कितनी रंग बिरंगी पतंगे ,
उड़ रही आसमान में ये सारी पतंगे....
आसमान में सभी पतंगों को उड़ाते...
जब पतंगे कट जाती हैं,
लडके सब दौड़ -दौड़ कर लूटने जाते....
नहीं इनकी होती कीमत जादा,
एक दो रुपये में मिल जाती अच्छी -अच्छी पतंगे...
लोग इनको खूब उड़ाते,
और बच्चे करते मौज मस्ती....

लेख़क चन्दन कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

सोमवार, 20 सितंबर 2010

कविता बचकर रहना

बचकर रहना
सुनो -सुनो व भाई बहना,
आई फ्लू से बचकर रहना....
आई फ्लू हैं एक ऐसी बीमारी,
सबको कर देती हैं हैरानी....
सुनो -सुनो व भाई बहना,
आई फ्लू से बचकर रहना....
साफ सफाई से रहना हर दम,
आई फ्लू को दूर भगाना....
सुनो -सुनो व भाई बहना,
आई फ्लू से बचकर रहना....
लेख़क सागर कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

कविता महात्मा गांधी

महात्मा गांधी

गांधी जी ने की थी जो लड़ाई,
मारी किसी को गोली दी गाली....
प्रेम और अहिंसा के बल से,
दिला दी उन्हों ने आजादी....
चले गए अंग्रेज छोड़ के ये देश ,
बापू हो गये दुनिया के प्यारे....
बापू ने बोली ग़ली -ग़ली पर एक ही बोली,
हिन्दुस्थान हमारा सबसे न्यारा....



लेख़क लवकुश कक्षा ७ अपना घर कानपुर

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

कविता :लगाओ दस पेड़ हर साल

लगाओ दस पेड़ हर साल

होगें जंगल,झरने, नदी और तलाब
और होगें ये मानव
उजड़े पेड़ होंगें और खेत खलिहान
जब ये प्रक्रति होगी
करो कोई येसा काम
जिससे प्रक्रति का हो नुकसान
येसी करो प्रतिज्ञा हर साल
लगाओ दस पेड़ हर साल


लेख़क :अशोक कुमार
कक्षा :
अपना घर

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

कविता ऐसी कौन सी बात

ऐसी कौन सी बात
एक बात हैं बेनकाब,
जिसका नहीं किसी के पास जवाब.....
जवाब भी होता तो क्या करते,
डर के मारे इधर -उधर छिपते रहते....
यह बात जरा ध्यान से सुनो भाया,
हर बात के पीछे छिपी हैं काले धन की माया....
काला धन हो या मेहनत का पसीना,
किसी के आगे नहीं झुकता अब ये जमाना.....
सभी को अपने कामों की पड़ी हैं जल्दी,
घर में नहीं हैं तेल, नून और हल्दी....
उनको तेल, नून, हल्दी से क्या लेना -देना,
जिस तरह निरमा से अलग हो जाता फेना.....
बहुत हुआ अब बेनकाब बात बताओ,
बात बता दी पूरी सुना नहीं क्या तुम हो बहरे.....
कुआँ, नदी होती जैसी गहरी नहरे,
अब अपने आस पास यह बात बताओ....
ढोल डुग्गी पीट कर आवाज लगाओ,
भ्रष्ट नेताओं से अपना देश बचाओं .....
लेख़क: आशीष , कक्षा अपना घर कानपुर

बुधवार, 8 सितंबर 2010

कविता मंगाते हैं अब पैसे

माँगते हैं अब पैसे
ये नेता हो गए हैं कैसा ,
माँगते रहते हैं अब पैसे....
सड़को रोड़ो और चौराहों पर,
पुलिस को भी अब देखो....
कैसे वसूलते हैं पैसे,
ये सब हमने अपने आँखों से हैं देखा.....
ये नेता हो गए हैं अब कैसे,
माँगते रहते हैं अब पैसे....
लेखक ज्ञान कक्षा अपना घर कानपुर

रविवार, 5 सितंबर 2010

कविता रक्षाबंधन

रक्षाबंधन
राखी आयी राखी आयी,
भाई ने बहनों के हाथो से राखी बंधवायी....
राखी नहीं ये हैं रक्षाबंधन,
कभी न टूटे भाई बहन के रिश्तों का बंधन....
रक्षाबंधन का पर्व सभी मानते ,
हिन्दू हो या मुस्लिम सभी इसके गाते गुण....
श्रावण माह की तिथि में इसे मानते,
भाई अपनी बहनों को रक्षा का आशीष देते....
हर पर्व सभी के लिए खुशियाँ लाते,
वह सभी के मन को हर्षाते.....
लेखक आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

शनिवार, 4 सितंबर 2010

कविता कब चेतोगे

कब चेतोगे
एक सज्जन खा रहे थे खाना ,
खाने में था कड़ी और चावल.....
खाते चले जा रहे थे,
कुछ नहीं देख रहे थे....
जो भी आ रहा था,
गिर रहा था उनकी थाली में....
उनको कुछ होश नहीं था,
न ही वो देख रहे थे .....
अचानक एक मक्खी आयी ,
गरदन में उनके घुस गयी.....
झट से उनको पलती हो गयी,
अटक गयी उनके गरदन में मक्खी .....
पहुचे अपने घर के अन्दर,
निकालो जल्दी मेरी गरदन से मक्खी ....
नहीं तो हम मार जायेगे जल्दी....
लेखक अशोक कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

कविता ब्रहमाण्ड

ब्रहमाण्ड
यह ब्रहमाण्ड हैं कितना अनोखा
इसको गौर से हमने नहीं हैं देखा
कैसा हैं ये ब्रहमाण्ड हमारा
जिसमे छोटा सा हैं संसार हमारा
क्या कही और भी होगा जीवन
क्या वहां पर भी होगा अपना पन
यह तो हैं एक आनोखी कहानी
जो अभी तक हमने नहीं जानी
मै भी जाऊँगा एक दिन चाँद पर
जहाँ पर नहीं हैं हवा पानी और घर
ये अजीब सा ब्रहमाण्ड होगा कैसा
जैसा हमने सोचा क्या होगा वैसा
लेखक धर्मेन्द्र कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

बुधवार, 1 सितंबर 2010

कविता रक्षाबंधन

रक्षाबंधन
रक्षाबन्धन का दिन आया रे ,
बहाने खुशिया खूब मनायेगी....
पापा बाजार जायेगे,
राखी खूब लायेगें ....
रंग बिरंगी राखियाँ हैं,
बहाना सोचे किसको बांधू.....
सबसे पहले भईया को बांधू,
मिठाई उसको खिलाऊगी....
पैसा हम तो पायेगें ,
उस दिन भाई खाते हैं कसम....
हर दम करेगें तुम्हारी रक्षा,
रक्षाबंधन का दिन आया रे....
लेखक जीतेन्द्र कुमार कक्षा अपना घर कानपुर