शनिवार, 4 मई 2024

कविता:"दुनिया "

"दुनिया " 
अब अंत आ रहा है,
न जाने ये दुनिया किस ओर जा रहा है | 
सारी  चीजों को कर दिया बर्बाद ,
अब करते है इनको बचाने का फरियाद | 
अब अंत आ रहा है,
सूरज की किरणे भी जहर बरसा रहा है | 
अब जीवन बनता जा रहा है जिन्दा लाश ,
अब अंत आ रहा है | 
कवि :गोपाल कुमार ,कक्षा :7th 
अपना घर 

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