शुक्रवार, 3 मई 2024

कविता "बड़े होना "

 "बड़े होना "
क्या कभी हम बड़े हुए हो ?
अपने पैरों पर खड़े हुए हो ?
क्या कभी अपने आप को तुम ने बदला है ?
क्या तुम्हारी जिंदगी कभी गिरके सम्भला है ?
हाँ मै जनता हूँ ,
क्योंकि ये हर किसी की जिंदगी की बात है | 
कभी दिन है तो कभी रात है ,
क्या तुमने अपने से छोटे की माफ़ी दी है ?
क्या तुमने सच में कोई इंसाफ़ी दी है ?
क्या तुम्हारे कोई निर्णय दिल ,
से है या दिमाग से | 
या फिर तुम्हारी हार के रोटी की मजबूरी है ,
हमेशा जिंदगी में हसीन शाम नहीं होता 
बड़े होना आम नहीं होता | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

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