सोमवार, 8 मई 2023

कविता :"अनजान सफर"

"अनजान सफर" 
 एक अनजान सफर पर निकला हूँ मैं | 
ना ही उसका अंत है ,
और ना ही उसका कोई शुरुआत | 
बस ऐसे ही निकल पड़ा हूँ मैं ,
मैं तो ये भी नहीं जनता | 
कि ये मुझे कहाँ ले जाएगी ,
और किस मोड़ पर छोड़ेगी | 
इस सफर पर चलने के लिए ,
कई लोग मदद करेंगे | 
पर मेरा कोई साथ नहीं देंगे ,
मुझे खुद ही अकेले चलना होगा| 
और खुद ही कोई रास्ता निकालना होगा,
एक अनजान सफर पर निकला हूँ मैं |    
कवि :नितीश कुमार ,कक्षा :12th 
 अपना घर 

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