गुरुवार, 20 मई 2021

कविता : इस कड़कती मौसम

" इस कड़कती मौसम"

 इस कड़कती मौसम में,

हे वर्षा एक बूंद जल तो बरसा | 

नदियाँ  और झरनो को फिर से पुनर्जीवित  कराओ ,

उन खेतो को  फिर से हरित  बनाओ | 

उन खेतो में फिर से फसलग उगववो,

हे वर्षा एक बूंद जल तो बरसा | 

पियासे लोगों का पियास तो मिटाओ ,

उन नदियाँ और झरनो को फिर से जीवित बनाओ |

बंजर जमीन को हरित बनाओ ,

इस कड़कती मौसम में | 

हे वर्षा एक बूंद जल  तो बरसा |

कवि : अमित कुमार ,कक्षा ;7th 

अपना घर



 

5 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. नन्हे कवि अमित भाई ने बहुत सुन्दर कामना वाली यह रचना रची है। बधाई उनको।

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