शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

कविता : मोती सी चमक

"  मोती सी चमक " 

  मोती सी चमक तेरी,

घासों पर नजर आती है | 

वह  मखमली सी खुशबू ,

सिर्फ फूलों से महक आते हैं | 

चाँद की रोशनी में भी,

तारे और सितारे नज़र आते हैं | 

वह ओस की बूँद ,

जो सुबह  घासों में फैली होती है | 

मैं  रोज़ टहलता हूँ सुबह,

कोहरा  ही कोहरा नजर आता है |

इस हवाओं की झोकों से,

ओस की बूंदे  फिसल जाती हैं |

मैं रोकना चाहता हूँ ओस को, 

जो आँखों से टपक जाते हैं |

और जमीन पर गिर जाते हैं,

गिर क मिट्टी  में यूँ मिल जाते हैं | 

                                                                                                                   कवि : सुल्तान कुमार, कक्षा : 7th 

अपना घर

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