शनिवार, 20 जून 2020

कविता : अब ठानी है

" अब ठानी है "

कुछ करने की मैनें अब ठानी है 
बहुत अरसो बाद अपनी बात मानी है
मन भटकता ,दिमाग नकारता था,
बिना सोचे -समझे कुछ भी पढ़ता था | 
समय को अब ही गवानी है,
 कुछ करने की मैंने अब ठानी है | 
बहुत सुने प्रवचन और मोटिवेशन,
अब खुद ही बनाना होगा अपना मन | 
कुछ कर दिखाना है इस ज़माने में,
अब कुछ करने की ठानी है | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर 
कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " अब मैंने ठानी है " प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखा बहुत अच्छा लगता है | गणित में बहुत रूचि रखते हैं |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें