मंगलवार, 12 मई 2020

कविता : हरियाली बन जाऊँ

" हरियाली बन जाऊँ "

हरियाली को देखकर मन करता है,
खुद भी हरियाली में ढल जाऊँ | 
शान्त स्वभाव से बढ़ता रहूँ,
पानी न मिलने पर मैं सूख जाऊँ | 
हवा जब मेरे पास से गुजरे ,
शरण के लिए मेरे पास ठहरे |
नाच - नाच कर गाना गाऊं ,
मैं सबको ये पाठ पढ़ाऊँ | 
अच्छी अच्छी बातें उन्हें सिखाऊँ ,
सीना ताने आसमान को बुलाऊँ | 
मिनरल्स को दम भर खाऊं,
काश मैं हरियाली बन जाऊँ | 
शांत स्वभाव से जिंदगी बिताऊँ | | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता समीर जी की प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर के द्वारा लिखी गई यह कविता जिसका शीर्षक" हरियाली बन जाऊँ " है | समीर ने यह कविता प्रकति पर लिखी है की कैसे हमें हरियाली सुकून देती है | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है |

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