बुधवार, 22 जनवरी 2020

कविता : बचपन के दिन

" बचपन के दिन "

वे लम्हें जो बचपन के चले गए,
वह उम्र जो घूमने हुए गुजर गए | 
पता हमें  नहीं किसी चीज की बात, 
तब भी मजा आता था सभी के साथ | 
खेलना कूदना लगा रहता,
खेल खेल में लड़ता रहता | 
वह सोचने का मौका नहीं मिलता, 
फिर भी बेवजह हर चीज के लिए 
बन टन कर जिद्दी रहता | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता विक्रम के द्वारा लिखी गई है | विक्रम कुछ न कुछ सिखने के लिए  तत्पर रहतें हैं | पढ़ाई  हमेशा  सीखते हैं और  सभी को बाँटते हैं |  विक्रम  को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक हैं | 

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